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अपने पिता के त्याग और लगन से भारतीय टीम में आए है पृथ्वी शॉ, जानिए इनके संघर्ष का पूरा सफर

पृथ्वी शॉ की चर्चा काफी पहले से ही हो रही थी और अब इस युवा बल्लेबाज को टेस्ट में डेब्यू करने का मौका मिल ही गया। इस 18 वर्षीय बल्लेबाज ने अपने वेस्ट इंडीज के खिलाफ डेब्यू टेस्ट में शतक जमाकर तारीफों की झड़ी लगा दी है।


राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर जैसे बड़े दिग्गज बल्लेबाज इस युवा खिलाड़ी के कायल हो गए हैं। लेकिन इस मुंबई के बल्लेबाज के लिए भारतीय टीम तक पहुंचने का सफर बहुत ही मुश्किल था।

4 साल की उम्र में ही मां को खोने के बाद भी करते रहे संघर्ष



जब पृथ्वी शॉ चार साल के थे, तब उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। पृथ्वी के पिताजी पंकज के लिए यह बहुत बड़ा झटका था क्योंकि वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे।
पंकज ने अपनी पत्नी के खो देने के बाद जल्द ही पृथ्वी को क्रिकेट एकेडमी में डाला और फिर उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बेटे के सपने को पूरा करने में लगा दी।

विरार से बांद्रा तक का सफर



पंकज सुबह साढ़े तीन बजे उठकर बेटे के लिए नाश्ता बनाते और फिर सुबह साढ़े चार बजे अपने बेटे को कंधे पर बिठा कर विरार से बांद्रा के एमआईजी ग्राउंड ले जाते थे।
जहां पृथ्वी पूरे दिन अभ्यास करते रहते थे, तो वहीं उनके पिता पेड़ की छांव में बेटे के खेल पर नजर रखते थे। इसके साथ ही वे स्थानीय बाजार भी जाते थे ताकि बेटे के लिए अच्छे क्रिकेट उपकरण ले सकें। फिर पूरे दिन अभ्यास करने के बाद पृथ्वी को लेकर शाम को घर पहुंचते थे।

पृथ्वी के सपने के लिए पिता ने बेच दी थी अपनी दुकान



पंकज ने कपड़ो की दुकान खोली थी, जो सूरत और बड़ौदा तक लोकप्रिय हो गई थी। दुकान बेचने की वजह से वह पृथ्वी को ट्रेनिंग दिलाने में सफल हुए।

कभी भी नहीं ली छुट्टी



पृथ्वी शॉ ने अपने एकेडमी से कभी भी छुट्टी नहीं ली। उन्होंने अपना हर एक दिन क्रिकेट के लिए समर्पित कर दिया था। इस तरह पृथ्वी शॉ ने अपने कठिन संघर्ष और मेहनत के बल पर आज टीम इंडिया में जगह बनाने में कामयाब हुए।

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